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द गर्ल इन रूम 105–५६

और तुम्हारी तनख्वाह कितनी है? यानी इन हैंड।' मैंने हैरत से उनकी ओर देखा। सौरभ दूसरी तरफ़ देखने लगा।

'यही कोई 45 हजार रुपया महीना, मैंने कहा।

"देखो, मुझसे ज्यादा तनख्वाह तो तुम्हारी है। हमें तो कट-पिटकर 42 हजार ही मिलता है।"

मेरे खयाल से उन्होंने अपने पैकेज में स्टारबक्स की अनलिमिटेड लात्ते कॉफ़ी नहीं जोड़ी थी। मैं सोचने लगा कि अब क्या बोलूं। यानी क्या यह जॉब करने से पहले उन्हें पे-स्केल्स के बारे में मालूम नहीं था? लेकिन मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा।

मुझे पंद्रह साल का अनुभव है, राणा ने कहा 'तुमने कब काम करना शुरू किया था? चार-पांच साल

पहले? तो क्या यह ज्यादती नहीं?"

मैंने सिर हिला दिया। मुझे लग रहा था कि केंद्र सरकार की वेतन नीति के लिए मैं ही जिम्मेदार हूँ। मैं उन्हें

बताना चाहता था कि मुझे इसके लिए गुटखा चबाने वाले एक लीचड़ बॉस को दिन भर झेलना पड़ता है। में तो बड़ी ख़ुशी से राणा की जगह काम करने को तैयार हो जाता। थोड़ी-सी तनख्वाह ही तो कम मिलती, लेकिन लोगों

को तमाचे जड़ने और मुफ़्त कॉफ़ी पीने का मौका तो मिलता।

सौरभ ने पिंकी फ़िंगर दिखाई और टॉयलेट चला गया। मैंने बहुत मेहनत की है। मेरी एन्युअल रिपोर्ट्स एक्सीलेंट रहती हैं। इसके बावजूद पिछले पांच साल से

मेरा प्रमोशन नहीं हुआ है। वो लोग मुझे असिस्टेंट कमिश्रर नहीं बना रहे हैं।'

मैंने सिर हिला दिया और चुपचाप अपना मिल्क पीता रहा। लक्ष्मण की ब्राउज़र हिस्ट्री से इस सबका क्या

सरोकार था? "और इस दौरान, आईआईटी से कोई भी चूतिया आता है और आईपीएस एग्ज़ाम क्लीयर कर लेता है। बो

उसको मेरा बॉस बनाकर मेरे सिर पर बैठा देते हैं।' मैं सोचने लगा कि कहीं आईआईटी वाला वो चूतिया मैं ही तो नहीं हूं। शायद नहीं। क्योंकि मैं वो

आईआईटीयन था, जो आईपीएस एग्ज़ाम क्लीयर नहीं कर पाया था। यानी, मैं और बड़ा वाला चुतिया था।

“ये कोई अच्छा सिस्टम नहीं है। कलोनियल हैंगओवर चल रहा है।' मैंने कहा।

'क्या?' * मतलब अंग्रेजों के जमाने में जैसी सिविल सर्विसेस थीं, उनकी वही हालत आज भी है। "हां, वो बूतिए गोरे। मेरे जैसे ईमानदार अफसर बहुत कम होंगे और वो लोग मेरे साथ ऐसा सलूक करते

मेरे ख्याल से मुफ्तखोरी बेईमानी की श्रेणी में नहीं आती थी। वैसे भी दिल्ली पुलिस के किसी भ्रष्ट इंस्पेक्टर को जैसे मौके मिलते हैं, उनके सामने कॉफी की क्या विसात है।

अब मैं सोचने लगा कि राणा का मूड कैसे ठीक कर मेरे ख्याल से जब कोई अपनी बदहाली का गाना गा

रहा हो, तब उसको इसी बात से ख़ुशी मिलती है कि किसी और की उससे भी ज्यादा बुरी हालत है। "मैं आईआईटी से हूं, सरारा लेकिन मुझे कैंपस से कभी कोई जॉब नहीं मिला। मैं उन चुनिंदा आईआईटीयन्स में से हूं, जिन्होंने बिना किसी ऑफर के ग्रैजुएशन किया।'

'क्यों?' "खराब ग्रेड्स मेरे कुछ इंटरव्यू खराब हुए थे। फिर एक ब्रेकअप हुआ। उस फेज़ में मेरी पूरी जिंदगी ही

डिस्टर्ब हो गई थी।'

'आह, तो इसलिए तुम आज चंदन क्लासेस में हो? मैंने सिर हिला दिया। लेकिन मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि एक कारण यह भी था कि मैं हमेशा दिल्ली में

रहना चाहता था। आईआईटी कैंपस के जितना करीब हो, उतना। क्योंकि वहां पर जारा रहती थी और उसके

क़रीब रहकर ही मुझे फिर से उसके साथ होने का मौका मिल सकता था।

"तुम्हें अपना काम पसंद है?' "मुझे इससे नफरत है।

'रिचली?'' कभी-कभी तो मुझे लगता है कि यह काम करने से बेहतर है, जेल में होना।'

इंस्पेक्टर हंस दिए।

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